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अष्टावक्र गीता-दोहे -12

अष्टावक्र गीता-12
माया कल्पित विश्व यह,माने प्रज्ञावान।
विगत कामना को कहाँ,डर न, मृत्यु ध्रुव जान।।

रहे भले नैराश्य में,फिर भी नहीं उदास।
महा आत्मा-अनिछ जग,किससे तुले,न आस।।

बिना किसी अस्तित्व के,दृश्यमान जग मान।
त्याज्य और अत्याज्य को,लखे न प्रज्ञावान।।

सुख अथवा दुख उभय अपि,दोनों रहते एक।
अनासक्त नर के लिए,यद्यपि लोभ अनेक।।

बुद्धिमान को तो लगे,यह जग-लीला खेल।
कभी न,अष्टावक्र कह,बुधजन-मोहित-मेल।।
           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
              9919446372

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5 Comments

RISHITA

26-Feb-2024 04:46 PM

V nice

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Mohammed urooj khan

26-Feb-2024 01:14 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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KALPANA SINHA

26-Feb-2024 10:37 AM

V nice

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